पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१८

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बारी बैस । मोह को यह गर्व सागर भी आडू अनेस ॥१७॥ उक्त नाइका की सभी प्रति के हे सपी आजु वीथिन भी नंदकुमार सोको मिलो। अह उत रिछपति पद उजदत भयो भालू रिल कहे नक्षत्र बसु आठ पंच रहे हस्त हाथ इल के साथ ते कर काहये कि नर ले दोई अदभुत रूप कर है सोमोको गहि कार कुंजन मलै भयो भाग रूप हम कौल मग ते निकसै हमारी वैसा थोपी (बी) नागोर के बी को सागर भरोहै। इहाँ सुनचंद उपदेश चीन उपमान मुझे लदे परम भवानपरने ताते दीपक कोई कहै । बाब नाही हे साहे. सूर से सूर्य को नाम शाम सारंग दीपक । अरू नायक के मेल हो नरम हरत है। हाते मेम- सिलीगुणसारंगनिहाइल को कौन उपाहू । वान भोर खुजान निवासत धरत धरनी पाडू । चमक चबुदिस चलत चाही समुभूपन भात ॥ नंदनंदन बैठे हेरता हत निस दिन मात्र हो रही हूह विपत तेरी बिपत होहु सहा ॥ सूर सरहा सप गवित होपा गुलदार।। उक्त पूर्ववत् के हे सपी सिलाए सर सर साल (तसाद) लाभ कमाल देपन को कौन उपाइ करें। का शिलीमुख नाय मेवर जब धरती पर पाइ देत तब निकाल रो सुगंध पाह। अरु संधुभूपण शशि के चाही जे चकोर है ते चा निधर सेवा है। अरु नंदनवन बैठ के मेरे रूप को हेरत रहै कि नाबाल शामिलति ते विना पति की हो गई ।