उक्ति नायका का सषी से (कै हे काल) हरिग्रह परवत जा पारवती पति शिव पतनी गंगा सहेली जमुना हयभूषन पूजी में पूजी नाही है तातें अकेली काल जैहै तिरसकार भासा जामिनी भासा रात्री में जात (जैहै ताते ) भय लागत है सो कासों कहों को सुनै बडी बिपत परी है पगरिपु कंटक तामें गज कहे करील के मिल भये सो तन ते को सरूझैहै (जहं गूढ़ उक्त तें भाव को जो उदय है सो स्याम को समुझायो यामें गूढोक्ति उदय) यह गूढउक्त अलंकार भाव उदै होत है लच्छन । दोहा-गूढ उक्त कछु भाव तें, उत्तर दीनो जान । भाव उघारे ते कहै, भाव उदय सुष मान ॥१॥८५॥ सिंधव झष आराम मधि तें आज हेरायो स्याम। हेरो सारंग मदनतिया के अंत विचारो बाम ॥ पति माता औ मीन आदि दै वै गयो समुभो चित्त । बयरोचनसुत को सुभाव संग देषि परत ना मित्त॥ इंद्रसहाय उठे चारो दिस लये सहेलो साथ। यह बिपत्त में राषनहारो कौन हमारो नाथ ॥ तातें बिनै करति नंदनंदन चलो हमारो संग। बिप्र उक्त सुन सूरस्थाम को घट गौ बिरह प्रसंग ॥ ८६॥ उक्त नाइका की नायक प्रति सिंधव नाम लवन झप नाम मछरी औ आराम याके मध के बरन निकारत (निकारो तो) बछरा होत है अर्थ हमारो बछरा हेराय गयो है हेरो नाम लपो सारंग नाम पछी बाज मदन
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