पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/९३

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अति आपु आपुनै ऊपर वारी॥ सरस्याम के हेत अलंकृत कोनी अमल सुमिल हितकारी॥१८॥ _ उक्ति सषी की सपी प्रति कै आज नट मुकुर दरपन वृषभानदुलारी देषत है सारंगरिपु पट ताते आनन मल पोछो अरु फेर सारंग दीप सुत काजर ताको रेष सम्हारी गज नाम सिंदुर ताको विंददै के बिजे छन जो वेद श्रवन है तिन में भान (तरुन तरोना) तरुना पहिरे सेसलता नागबेलि तेके (ताके) पत्र सुधा ग्रह अधरन में गहत अंग अंग आनंद भयो अरु कंठ श्रीकंठ में पहिरी अरु वाम नाम बेसर अकास नाक में पहिरे रामदूत अंगद जो वाजूबंद है सो नक्षत्र हस्तन में पहिरे धनद कुबेर पुरी लंका (अलका) अलक बहुत रुचिरचत है यह अपनी छवि देषि आप आधुन पै बारन लगी यह जो अलंकार कीने सो स्याम के हेत अमल सुमिल कीनो है यामें छबि बनाइब कारण देष षुसी होत (होब) कारज साथही है ताते प्रथम हेत लच्छन । दोहा-हेत प्रथम में होत है, कारण कारज जान ।। ९८॥ - सजनी होन एक पहिचानो। बाज बोल हेरन दुहीनचल मिलत सुतापति मानी॥ बाहन मातु तास रस जद्यपि सब बज करत बखानो। मोरे मन एको नहिं आवत करत तिहारी आनो ॥ भूषन बसन भवन भरपूरन भूर भंडार भरी सो। सूरस्याम संपत है मेरे और नएको सो सी॥ ॥ । १. उक्त सपी प्रत जसादो की कै हे सअनी मैं एक ही बात नहीं पहि-