पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/९४

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बानत बाज नाम तुरंग ताको बोल होसन हेरन नजर दो दो अंत के बरण ते हीन करे ते तुहीनचल परवत भयो ताकी जा पारवती पति (शिव) वाहन बैल मात गोरस गोरस का सब वधान करत हैं तद्यपि मेरे मन में एक नाही आवत है तेरी सपत करि कहत हौं भूषण है बसन घर भंडार जे है मेरे तो एक स्याम संपत है और वस्तु मोको सो सम नाहीं है यह में सम्पत के कारण कृष्ण कारज संपत ता से एकता करी ताते दूसरो हेत लक्षण । - दोहा-कारन कारज ए सभै, बस्तु एक ही संग ॥ १ ॥९९॥ अंगदान बल को दे बैठी। मंदिर आजु आप ने राधा अंतर प्रेम उमेठो। दधिसुतधररिमपिता जानि मन पाछे आयो मोरे । कर भूषन तन हेरन लागी गयो देष मन चोरे । सारंग पछ अछ सिर ऊपर मुष सारंग सुष नीके। कट तट पट पियरो नटबर वपु सापें सुष रुष जी के ॥ नीकन मे सीतलता व्यापी अंग अंग सियरानौ॥ सूद प्रतछ निहारत भूषन सब दुष दुरण दुरानी ॥ १०० ॥ उक्त सषी की सपी प्रत के इसपी आज बल को अंगदान पीठ देकै राधा बैठी हैं (रही) अपने मंदिर में राधा प्रेम अंतर को उमेठ कै दघिसुत नाम चंद धर महादेव रियु काम पिता कृष्ण तब लो पाछे आये हमारे यह जान के कर भूषन आरसी ताकी ओर निहारन लगी एन आपन गयो जान के कैसे देपै सारंग मयूर ताके पछ सिर पै सोहत है अरु मुष सारंग संग ताके सुर