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साहित्यालाप


कुछ दिनों से हिन्दी के लेखकों का ध्यान पद्य की भाषा की ओर गया है। अब तक हिन्दी का पद्य ब्रजभाषा ही में था। अब बोलचाल की भाषा में भी कविता होने लगी है। इस विषय की ओर पहले पहले बाबू अयोध्या प्रसाद का ध्यान गया। बोलचाल की भाषा में कविता अवश्य होनी चाहिए। कोई कारण नहीं कि हम लोग बोलें एक भाषा और कविता करें दूसरी भाषा में। बातचीत के समय जो जिस भाषा में अपने विचार प्रकट करता है वह यदि उसी भाषा में कविता भी करे तो और भी उत्तम हो । ब्रजभाषा बहुत काल से कविता में प्रयुक्त होती आई है। अतएव एकबारगी उसका परित्याग नहीं किया जा सकता । क्रम क्रम से बोलचाल की भाषा में पद्य का प्रचार होना उचित है। यदि नये प्रकार की कविता से लोगों का भलीभांति मनोरञ्जन हुआ तो काव्य में ब्रजभाषा का प्रचार किसी दिन आप ही उठ जायगा और सम्भव है कि शीघ्र ही किसी दिन ऐसा हो; क्योंकि एक अथवा दो जिले की भाषा पर देशभर के निवासियों का प्रेम बहुत दिन तक नहीं रह सकता।

इस निबन्ध को समाप्त करने के पहले हिन्दी की शाखा उर्दू के साहित्य के विषय में भी हम कुछ कहना आवश्यक समझते हैं।

उर्दू की उत्पत्ति यद्यपि देहली में हुई तथापि उसके साहित्य के जन्मदाता अच्छे अच्छे कवि पहले पहल दक्षिण के गोलकुण्डा और बीजापुर में हुए। अमीर खुसरू के अनन्तर शुजाउद्दीन नूरी ने उर्दू में कविता की। नूरी फैज़ी के मित्र थे। नूरी