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हिन्दी भाषा और उसका साहित्य


गोलकुण्डा के नवाब सुलतान अबुलहसन कुतुबशाह के मन्त्री के पुत्र के शिक्षक थे। नूरी ने अनेक ग़ज़ले कही हैं। १५८१ और १६११ ईस्वी के लगभग गोलकुण्डा के नव्वाब कुली कुतुबशाह और अबदुल्ला कुतुबशाह ने भी उर्दू में कविता की और अनेक गज़लें, रुबाई, मसनवी और कसीदा बनाये। तहसीनुद्दीन ने 'कामरूप और कला' नाम की मसनवी और इबननिशाती ने 'फूलबन' नाम की कहानी इसी समय के लगभग लिखी।

इब्राहीम आदिलशाह ने, बीजापुर में, १५७९ से १६२६ ईस्वी तक राज्य किया। उसने 'नवरस' नामक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक का नाम यद्यपि शुद्ध हिन्दी है तथापि यह लिखी उर्दू ही में गयी। इब्राहीम आदिलशाह के अनन्तर अली आदिलशाह के समय में नसरती नामक कवि ने 'गुलशने इश्क' और 'अलीनामा' नाम के दो ग्रन्थ लिखे। यह कवि हिन्दू था। अलीनामा में उसने अली आदिलशाह का चरित खिला है।

दक्षिण में सबसे प्रसिद्ध उर्दू के दो कवि औरङ्गाबाद में हुए; उनके नाम वली और शीराज हैं । वली का काल १६८० और १७२० के बीच में है। वली को तो लोग "रेखता का पिता" ( बाबाय रेखता ) कहते हैं। यह बात सभी मानते हैं कि उत्तरी हिन्दुस्तान में उर्दू कविता की जो उन्नति १८वीं शताब्दी में हुई, उसका मूल कारण वली ही थे। उन्हींकी कविता को आदर्श मानकर और और कवियों ने कविता की।