औरंगजेब के राज्य-काल के अन्तिम भाग में वली देहली गये और वहां शाह गुलशन नामक विद्वान् की सलाह से उन्होंने
फारसी के कवियों की उक्तियों को उर्दू में लिखना आरम्भ किया।
देहली के उर्दू-कवियों में ज़हीरुद्दीन हातिम पहले कवि थे। वे १६९९ में उत्पन्न हुए और १७९२ में मरे। हातिम के अनन्तर
नाज़ी, मज़मून और आबरू ने उर्दू में कविता की। हातिम के
दो दीवान प्रसिद्ध हैं। वह बहुत अच्छे कवि थे। रफीउस्सौदा,
हातिम के शिष्य थे। उर्दू में सौदा का बड़ा नाम है। उनकी
कविता सभी को प्रिय है। मीर तक़ी, खान आरज़ू, इनामुल्ला
खां और मीरदर्द भी देहली में उर्दू के प्रसिद्ध कवि हुए हैं।
नादिरशाह ने जब देहली को लूट लिया तब आरज़ू लखनऊ
चले आये । वहीं उनकी मृत्यु हुई। उर्दू के कवियों में सौदा
और मीर तक़ी सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं। १८वीं शताब्दी के
प्रारम्भ में सौदा का जन्म देहली में हुआ। उन्होंने हातिम से शिक्षा पायी। देहली के बिगड़ने पर सादा लखनऊ चले गये। वहां नवाब शुजाउद्दौला ने ६०००) रुपये साल की जागीर उन्हें दी। वे लखनऊ ही में मरे । उनकी मृत्यु १७८० ईस्वी में हुई। उन्होंने कई काव्य लिखे। उर्दू काव्य के जितने प्रकार हैं प्रायः सबमें उन्होंने कविता की है। सौदा की व्याज-स्तुति ( मज़म्मत ) सबसे अधिक प्रसिद्ध है। मीरतक़ी का जन्म आगरे में हुआ। परन्तु लड़कपन ही में वे
देहली चले गये और वहां आरज़ू से कविता सीखी। सौदा की