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साहित्यालाप

उन्होंने शेख इबराहीम ज़ौक़ से कविता सीखी थी। देहलो के अन्तिम कवियों में मुशफ्फ़ी का बड़ा नाम है। वे लखनऊ के रहनेवाले थे ; परन्तु १७७७ ईस्वी में वे देहली चले गये थे। वहां एक कवि-समाज स्थापित करके उन्होंने कविता की बहुत कुछ उन्नति की। मुशफफ़ी ने पाँच दीवान, एक उर्दू कवियों का तज़किरा ( जावनचरित ) और एक शाहनामा ( शाहआलम तक हुए बादशाहो का चरित ) बनाया। कयामुद्दीन और असदुल्ला खां ने भी कई पुस्तकें लिखी हैं।

आगरे के मीर वली-महम्मद (नजीर) भी अच्छे कवियों में गिने जाते हैं। नज़ीर के जोगीनामा, कौड़ीनामा, चूहानामा, बनजारेनामा कौन नहीं जानता ?

फ़ोर्ट विलियम कालेज़ कलकत्ता, के डाक्टर गिलक्राइस्ट ने जैसे लल्लू जी लाल और सदल मिश्र इत्यादि को शुद्ध हिन्दी में पुस्तके लिखने के लिए आश्रय दिया था, वैसे ही कई विद्वानों को उर्दू में पुस्तकें लिखने के लिए भी उन्होंने रखा था। उर्दू लिखनेवालों में से सैय्यद महम्मद हैदर बख्श ( हैदरी), मीर बहादुर अली ( हुसेनी), मीर अमनलुत्फ, हफ़ीजुद्दीन अहमद, शेरअली, काज़िम अली, मज़हर अली और निहालचन्द मुख्य थे। इन लोगों ने उर्दू में अनेक पुस्तकें लिखी हैं; जिनमें गुलज़ारे-दानिश, तारीख नादिरी, अखलाके-हिन्दी, बागो-बहार, चहारदरवेश, इख़वानुस्सफ़ा और शकुन्तला-नाटक प्रधान हैं।

जिस प्रकार शुद्ध हिन्दी के कवि संस्कृत के छन्दों का प्रयोग