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साहित्यालाप

पिछली मनुष्यगणना की रिपोर्ट के लेखक कहते हैं कि नागरीप्रचारिणी सभा संस्कृत-शब्दों को अधिक काम में लाना ही भाषा को शुद्ध करना समझती है। यह उनकी भूल है। जहां तक हम जानते हैं, सभा कदापि यह नहीं करना चाहती ; और न कभी उसने ऐसा करने का यत्न ही किया। सभा ने उलटा,व्यर्थ संस्कृत शब्द लिखने के प्रतिकूल, अपना अभिप्राय प्रकट किया है। साहब के लिखने से जान पड़ता है कि आप 'हुक्म' और 'क़ायदा' इत्यादि शब्दों के समान फ़ारसी के शब्दों से भरी हुई भाषा ही के पक्षपाती हैं। आपने अपनी रिपोर्ट में हिन्दी का एक वाक्य लिखा है। वह वाक्य यह है-

"परन्तु उसमें एक कठिनाई पड़ती थी। मनुष्यमात्र की गणना की अपेक्षा थोड़ी ही गउओं को यह रोग था ; इस कारण इस चेप का बहुधा अभाव बना रहता था।"

यह बहुत ही बुरा वाक्य, उदाहरण के लिए चुना गया है। बुरी हिन्दी का यह एक अच्छा नमूना है। ऐसा न करना चाहिए था। साहब कहते हैं कि इस वाक्य के जो जो शब्द मोटे अक्षरों में दिये गये हैं ; उनमें से केवल दो शब्द उनके दफ्तर के हिन्दू-कर्मचारियों की समझ में आये। ये कर्मचारी,साहब के कहने के अनुसार, हिन्दी जानते थे। परन्तु हमारा अनुमान है कि वे बिलकुल हिन्दी नहीं जानते थे, नागरी अक्षर पढ़ चाहे भले ही सकते हों। वे अवश्य उर्दू के भक्त होंगे। इस वाक्य में 'अभाव' और 'मनुष्यमात्र ' ये दो शब्द कुछ कठिन हैं, परन्तु जिसने थोड़ी भी हिन्दी पढ़ी है और तुलसी