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हिंदी भाषा और उसका साहित्य

दासकृत रामायण भी पढ़ता और समझता है, उसे इस वाक्य का अर्थ समझने में कुछ भी कठिनता न पड़ेगी। साहब के कर्मचारियों के अनुसार 'परन्तु ' और ' कठिनाई ' भी कठिन शब्द हैं। उनके स्थान में यदि 'मगर' और 'मुश्किल' का प्रयोग होता, तो शायद वे झट उन्हें समझ जाते। इसी से अनुमान होता है कि वे करर्मचारी हिन्दी के नहीं किन्तु उर्दू के जाननेवाले हैं।

साहब उच्च हिन्दी के प्रतिकूल हैं। हमारा भी यही मत है और नागरी-प्रचारिणी सभा का भी। हां, परन्तु साथ ही उसके हिन्दी में फ़ारसी शब्दों के प्रयोग किये जाने की हम कोई आवश्यकता नहीं देखते। राजा शिवप्रसाद की हिन्दी शायद साहब को पसन्द हो; परन्तु उसमें फ़ारसी शब्दों का मेल है। फ़ारसी शब्दों के मेल के बिना भी सरल हिन्दी लिखी जा सकती है और ऐसी हिन्दी में यदि कहीं कहीं संस्कृत के 'कठिन','सकल','कष्ट', इत्यादि सीधे सादे शब्द आजायं तो हम कोई हानि नहीं समझते। बँगला और मराठी-भाषा में हज़ारों शब्द संस्कृत के होने पर भी जब बङ्गाली और मराठे उन्हें समझते हैं तब वैसे शब्द हिन्दी में होने से इस प्रान्तवाले उन्हें क्यों न समझ सकेंगे ? इसका कोई कारण नहीं देख पड़ता। पढ़े लिखे मुसलमानों को छोड़कर सारी प्रजा उर्दू की अपेक्षा शुद्ध हिन्दी को अधिक चाहती है। इसलिए हिन्दी को उर्दू का अनुकरण न करके स्वयं अपनी ही लिखावट को अधिक सरल करना चाहिए।