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साहित्यालाप

पूर्वोक्त रिपोर्ट के लिखनेवाले सुपरिंटेंडेन्ट साहब आधुनिक हिन्दी को बोलचाल की भाषा नहीं बतलाते। वे उसे उच्च हिन्दी कहते हैं। उनका मत है कि जैसी हिन्दी लिखी जाती है वैसी बोली नहीं जाती। साहब स्वयं हिन्दी नहीं जानते इसमें कोई संशय नहीं। यदि वे जानते तो पूर्वोक्त वाक्य अपने कर्मचारियों से न पढ़ाते। इस दशा में, उनको हिन्दी के विषय में ठीक ठीक ज्ञान कदापि नहीं हो सकता। यह सत्य है कि कोई कोई लेखक अपने लेखों में संस्कृत-शब्द बहुत प्रयोग करके भाषा को क्लिष्ट कर देते हैं, परन्तु सरल लिखनेवाले भी हैं। फिर एक बात यह भी है कि बोलचाल की भाषा से लिखित भाषा में कुछ अन्तर अवश्य होता है। क्या सुपरिंटेंडेंट साहब कह सकेंगे कि जिस भाषा में उन्होंने अपनी रिपोर्ट लिखी है उसी प्रकार की भाषा में वे अपनी मेम साहबा अथवा अपने लड़के-लड़कियों से बातचीत करते हैं ? अथवा मेकाले,बेकन, लिटन, स्काट, ऐडिसन, बक इत्यादि सबकाल, सब कहीं, वैसी ही भाषा बोलते थे जैसी भाषा उन्होंने अपने ग्रन्थों में लिखी है ? हमारा मत तो इसके प्रतिकूल है। लिखते समय लेख को अधिक मनोरज्जक करने के लिए लेखक अच्छे अच्छे शब्द रखता है; परन्तु बोलने के समय इस बात का उतना विचार नहीं किया जाता। फिर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो उच्च भाषा ही में बातचीत करते हैं और उच्च भाषा ही में अपने मन में विचार-संग्रह करके उनको वैसे ही लिखते हैं। अतएव ऐसे विद्वानों के ऊपर जानबूझ कर उच्च और अस्वाभाविक