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७.-हिन्दी की वर्तमान अवस्था ।

[ इलाहाबादवाले दूसरे साहित्य-सम्मेलन के लिए लिखित ]

१-बीज-वपन

हिन्दी का बीज-वपन हुए बहुत काल हुआ। परन्तु,निश्चयपूर्वक यह नहीं कहा जा सकता कि किस सन्, किस संवत् या किस समय में वर्तमान हिन्दी की आधावस्था का आरम्भ हुना। इस अनिश्चय का कारण यह है कि भाषाओं का उत्पत्ति एक दिन में नहीं होती। अनेक प्राकृतिक कारणों से देश, काल और समाज की अवस्था-विशेष के अनुसार,उनमें परिवर्तन हुआ करते हैं । नई भाषायें उत्पन्न हो जाती हैं और पुरानी भाषाओं का प्रचार कम हो जाता है । कभी कभी पुरानी भाषायें धीरे धीरे विलय को भी प्राप्त हो जाती हैं। चन्द बरदाई ने जिस हिन्दी में पृथ्वीराज-रासौ लिखा है उसके पहले भी हिन्दी विद्यमान थी। उस पुरानी हिन्दी के पूर्ववर्ती रूप भी प्राकृत भाषाओं में पाये जाते हैं और उनके भी प्राकालीन रूपं भारत के प्राचीनतम ग्रन्थों में मिलते हैं। अतएव इस परिवर्तन-परम्परा की प्रत्येक अवस्था का ठीक ठीक पता लगाना सहज काम नहीं। हमारी हिन्दी-भाषा विकास-सिद्धान्त का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। उसका क्रम-विकाश हुआ है। धीरे धीरे वह एक अवस्था से दूसरी अवस्था