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हिन्दी की वर्तमान


हम, हिन्दी-लेखक, बहुधा अँगरेज़ी नहीं जानते और जानते भी हैं तो बहुत कम।

७---वैज्ञानिक पुस्तकें

'विज्ञान'-शब्द आजकल 'शास्त्र'-शब्द का पर्यायवाची हो रहा है। शास्त्र किसे कहते हैं, इसका उल्लेख ऊपर हो चुका है । शान और विज्ञान कोई ऐसी वैसी चीज़ नहीं । उसकी महिमा सीमारहित है। संसार में सबसे अधिक महत्व की ज्ञेय वस्तु परमेश्वर है । वह भी ज्ञानगम्य है । ज्ञान की बदौलत ही उसका ज्ञान हो सकता है। ऐसे विज्ञानात्मा ऐसे "निरतिशय-सर्वज्ञ-बीज ,जगदीश्वर को जिसके प्रसाद से मनुष्य पहचान सकता है उसका माहात्म्य सर्वथा अकथनीय है । परन्तु, हाय ! इस ज्ञानगर्भ साहित्य का हिन्दी में सर्वतोभाव से अभाव है। यह बड़े दुःख,बड़े खेद, बड़े परिताप की बात है। ज्ञान की जो अनेक शाखाये हैं--शास्त्रीय विषयों के जो अनेक भेद हैं---उनमें से एक पर भी दो चार अच्छे अच्छे ग्रंथ हिन्दी में नहीं। एक जीव-विज्ञान-विटप, या एक पदार्थ-विज्ञान-बिटप, या एक छोटा सा रसायन-शास्त्र या और भी ऐसा ही एक आध ग्रन्थ हुआ तो क्या और न हुआ तो क्या। उससे किसी ज्ञानांश के अभाव की पूर्ति नहीं हो सकती । अन्य समुन्नत भाषाओं में जिस ज्ञान या विज्ञान की एक एक शाखा पर सैकड़ो महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ विद्यमान हैं उसकी किसी शाखा विशेष से सम्बन्ध रखनेवाली दो चार या दस पांच छोटी