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साहित्यालाप


व्याकरण ही जानता है और न उसके पास हिन्दी का कोई अच्छा सा कोष ही है। परन्तु हिन्दी उसकी मातृभाषा है । वह अपने घर में अपने कुटुम्बियों से हिन्दी में बातचीत करता है। उसे यह लिखना है कि--"प्रात:काल सूर्योदय सदा पूर्व में होता है।" कोष और व्याकरण से अच्छा परिचय न होने के कारण, सम्भव है, वह इस वाक्य को इस तरह लिखे :--

(१) सूरज हमेशा पूरब में निकलता है---या

(२) सूर्य सदा पूर्व में उदय होता है---या

(३) सूरज का उदय हमेशा पूर्व की तरफ़ होता है--या

(४) सूर्य रोज पूर्व से उदय होता है--या

इस भाव को वह किसी और हो तरह प्रकट करे । परन्तु वह चाहे जैसे शब्द प्रयोग करे और व्याकरण की दृष्टि से उसका वाक्य चाहे जितना अशुद्ध हो उसके कहने का मतलब सुननेवाला अवश्य समझ लेगा। यह तो सम्भव ही नहीं कि वह इस वाक्य को इस तरह लिखे:--

में है होता सूरज पूरब उदय हमेशा।

फिर कैसे कोई कह सकता है कि बिना उत्तम कोष और व्याकरण के हिन्दी का काम इस समय नहीं चल सकता ? लिखने का एक मात्र प्रयोजन यही है कि लेख का भाव पढ़नेवाले की समझ में आ गया तो लिखने का प्रयोजन सिद्ध हो गया । अतएव व्याकरण और कोष अच्छी तरह न जानने पर भी मन का भाव औरों पर प्रकट किया जा सकता है। हिन्दी के वैय्याकरणों की राय है कि मैं व्याकरण