पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/१२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२१
हिन्दी की वर्तमान अवस्था


नहीं जानता। यदि जानता तो रामायण, महाभारत, लोटा, सोंटा आदि शब्दों के लिङ्ग प्रयोग में मुझसे भूले न होतीं और जो कुछ मैं लिखता शुद्धतापूर्वक लिखता । हिन्दी के व्याकरण से इतना अनभिज्ञ होने पर भी मेरे इस लिखने या कहने का मतलब, सच कहिए, आपकी समझ में आता है या नहीं। यदि आता है तो आपको स्वीकार करना पड़ेगा कि व्याकरण और कोश में उत्तमतापूर्वक पारङ्गत हुए बिना भी समझने लायक हिन्दी लिखी जा सकती है।

हिन्दी के व्याकरण और कोश से विशेष लाभ वही उठा सकते हैं जिनकी जन्मभाषा हिन्दी नहीं । सरकारी कचहरियों और दफ्तरों के अफ़सरों और अधिकांश कर्मचारियों का भी हिन्दी के बृहत्कोश से बड़ा काम निकल सकता है। हिन्दी लिखनेवालों का काम तो, इस समय, उन्हीं कई एक छोटे मोटे व्याकरणों और कोशों से निकल सकता है जो हिन्दी में वर्तमान हैं । जो हिन्दी लिखना या पढ़ना बिल्कुल ही नहीं जानते उनकी बात जुदी है। उनका काम बिना कोश और व्याकरण के चाहे न भी चल सके; पर जो साधारण हिन्दी जानते हैं उनका काम अवश्य चल सकता है । विशुद्ध, सरस और अलङ्कारिक भाषा लिखने के लिए कोश और ब्याकरण का अच्छा ज्ञान अवश्य अपेक्षणीय है। परन्तु ऐसी भाषा लिखने का यही एक साधन नहीं । उसके लिए अभ्यास और पुस्तकावलोकन की भी आवश्यकता है ; कोश और व्याकरण रट कर कोई अच्छा लेखक नहीं हो सकता।