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हिन्दी की वर्तमान अवस्था


बोलनेवालों की संख्या और हिन्दी-भाषा की व्यापकता का विचार करने से दो चार या दस पांच ऐतिहासिक पुस्तकों का होना बड़ी बात नहीं। जिस उर्दू के बोलनेवालों और पक्षपातियों की संख्या हिन्दी बोलनेवालों के मुकाबले में बहुत ही कम है उसमें दस दस पन्द्रह पन्द्रह जिल्दों वाले भारतीय इतिहास बन जायं और हिन्दी में हज़ार पांच सौ पृष्ठों का भी एक अच्छा इतिहास न बने यह हम लोगों के लिए बड़ी ही लजा की बात है।

जीवनचरित भी साहित्य को एक बड़ी ही महत्त्वपूर्ण शाखा है । इस शाखा के ग्रन्थ छोटे बड़े, स्त्री-पुरुष, सबकी समझ में आ सकते हैं। सबको उनसे लाभ भी पहुंचता है और साथ ही मनोरञ्जन भी होता है। न ऐसे ग्रन्थों का आशय समझने के लिए विशेष चिन्तन की आवश्यकता होती है और न विशेष विद्वत्ता की। ऐसे सुखपाठ्य, मनोरज्जक और सर्व-जनोपयोगी साहित्यांश की कुछ ही पुस्तकें हिन्दी में हैं। उनको भी बने अभी कुछ ही समय हुआ और वे भी अच्छी तरह खोज और विचार पूर्वक नहीं लिखी गईं । बंगला में माइकेल मधुसूदन दत्त और ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के जैसे चरित हैं वैसा एक भी जीवनचरित हिन्दी में नहीं। अंगरेज़ी में बासवेल-कृत डाक्टर जान्सन का और लार्डमार्ले-कृत मिस्टर ग्लैस्टन का जीवनचरित इस शाखा के आदर्श ग्रन्थ हैं । हिन्दी में ऐसे ग्रन्थ निकलने के लिए अभी बहुत समय दरकार है । परन्तु अँगरेज़ी शिक्षा पाये हुए हिन्दी-भाषा-भाषी दो