लिए बड़ी योग्यता चाहिए। आजकल हिन्दी में जो कहानियां निकलती हैं उनके अच्छे न होने का कारण स्पष्ट है । योग्य लेखकों को चाहिए कि उपन्यास-रचना को ओछा काम न समझ कर अच्छे उपन्यासों से समाज और साहित्य दोनों का कल्याण-साधन करें।
१३---समालोचना
वर्तमान हिन्दी-साहित्य में समालोचनाओं की कमी नहीं। कोई समाचारपत्र, कोई सामयिक पुस्तक, ऐसी नहीं जिसमें समालोचनायें न निकलती हो। परन्तु उनको समालोचना कहना भूल है। वे विज्ञापन मात्र हैं। और, जो लोग समालोचना के लिए पुस्तके भेजते हैं उनका आन्तरिक अभिप्राय भी बहुधा यह होता है कि इसी बहाने हमारी पुस्तक का विज्ञापन प्रकाशित हो जाय। यथार्थ समालोचनायें भी कभी कभी निकलती हैं, परन्तु बहुत कम । समालोचना साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण शाखा है। उससे बड़े लाभ है। योग्य समालोचक अपनी समालोचना में समालोचित ग्रन्थ के ऐसे ऐसे रहस्य प्रकट करते हैं जो साधारण विद्या-बुद्धि के पाठकों के ध्यान में नहीं आ सकते । कभी कभी तो ऐसा होता है कि ग्रन्थकर्ता के आशय को समालोचक इस विशद भाव से ब्यक्त करके खिलाता है कि स्वयं ग्रन्थकर्ता को चकित होना पड़ता है। शकुन्तला और दुष्यन्त तथा पुरूरवा और उर्वशी की कथायें पुराणों में जिस प्रकार वर्णित हुई हैं कालिदास के नाटकों में उस प्रकार नहीं हुई। उनमें