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साहित्यालाप


क्टर कचहरियों और स्कूलों में देवनागरी-लिपि लिखते हैं वे सभी गँवार ठहरे !!! हिन्दी-लिपि लिखनेवालों को हमारे मुसलमान भाई किसी समय पहले शायद गंँवार समझते रहे हो, पर अब तो वे गँवार नहीं समझे जाते। अतएव आपको भी अब अपने पुराने विचार बदल डालने चाहिए । पुराने ज़माने में गँवार ही यह लिपि न लिखते थे, संस्कृत के बड़े बड़े पण्डित भी लिखते थे। वे गाँवों में भले ही रहते थे, पर अब भी तो सैकड़ों, हज़ारों विद्वान् सदा नहीं तो कुछ समय तक गाँवों में रहते हैं । इससे वे गँवार नहीं हो जाते। जिस लिपि में गोखले, भान्डारकर, तिलक और मालवीय अपने विचार व्यक्त करें वह गँवारों की लिपि नहीं।

(घ) मुसलमान अत्यन्त क्लिष्ट अँगरेज़ी भाषा पढ़कर पण्डित हो सकते हैं। पर संस्कृत-शब्द-प्रचुर हिन्दी समझ लेना उनके लिए कठिन काम है ! वे फ्रेंच पढ़ लेगे, बङ्गाल में रह कर बँगला जान लेंगे, महाराष्ट्र-प्रान्त में रह कर मराठी सीख लेंगे। पर हिन्दी उनके लिए हिब्रू है ! डाक्टर ग्रियसेन,मिस्टर विन्सेन्ट स्मिथ, मिस्टर ड्यू हर्ट, मिस्टर ग्रूज, मिस्टर पिनकाट, मिस्टर ओलढम आदि अंँगरेज़ हिन्दी के ज्ञाता हो सकते हैं, पर हमारे मुसलमान भाई नहीं ! नवाब साहब ही ऐसी बात मुंँह से निकाल सकते हैं। उनकी इस असमर्थता पर दया आती है और ऐसे कथन पर विश्वास करने को जी नहीं चाहता। और, आपको यदि हिन्दी अँगरेज़ी से भी अधिक कठिन मालूम होती है तो न पढ़िए । हम आपकी भाषा खुशी