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साहित्यालाप

कहिए, ऐसी ही उर्दू आजकल के शिक्षित मुसलमान बोलते और लिखते हैं न ? और यही स्कूलों, कालेजों और कचहरियों में लिखी और बोली जाती है न ? इसीसे इसका प्रचार भी है । क्योंकि आज कोई १०० वर्षों से वह टस से मस हुई ही नहीं। और हिन्दी ? वह तो बदल गई है ! रामायण की भाषा कुछ और है और आजकल की कुछ और। रामायण की भाषा आजकल कोई नहीं बोलता। हां, वली की भाषा अलबत्ते सब लोग बोलते हैं ! इस कारण वही सब के आदर की चीज़ होनी चाहिए।

अस्तु ; ये तो प्रस्ताव के विरोधियों की असङ्गत और अप्रासङ्गिक दलीलों के थोड़े में उत्तर हुए। थोड़े में इस लिए कि इस विषय पर एक पुस्तक लिखी जाने की ज़रूरत है। पुस्तक में इस विषय का सविस्तर विवेचन होना चाहिए और उसका एक उर्दू-संस्करण भी निकलना चाहिए । क्योंकि हिन्दी हमारे मुसलमान भाई पढ़ेंगे नहीं। और अपनी बाते हम उन्हें सुनाना जरूर चाहते हैं । सो, इसलिए कि उनकी भाषा उर्दू से हमारा तिलमात्र भी विरोध नहीं । हज़ारों, लाखों हिन्दु उसे अब भी लिखते पढ़ते हैं और आगे भी लिखते पढ़ते रहेंगे। हमारी प्रार्थना केवल इतनी ही है कि हिन्दी हमारे घर की भाषा है । देवनागरी-लिपि हमारे धर्म-कर्म की पुस्तकों की लिपि है। अधिकांश लोग यही भाषा और यही लिपि जानते हैं । उनके सुभीते के लिए अपनी उर्दू के पास बेचारी गँवारू हिन्दी को भी बैठ जाने दीजिए । उर्दू अपने अधिकार पर आनन्द से