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मर्दुमशुमारी की रिपोर्ट में हिन्दी उर्दू


स्तानी को उर्दू मान लेना और फिर उनके बोलनेवालों की संख्या एक ही खाने में दिखाना न युक्ति ही से सङ्गत मालूम होता है और न न्याय ही से। आपके लेखानुसार तो हिन्दुस्तानी भाषा उर्दू हो ही नहीं सकती। यदि आपके किये हुए लक्षणों वो इन प्रान्तों के लाट साहब भी स्वीकार कर ले तो क़ानून की जो पुस्तकें उन्हों ने देवनागरी अक्षरों में प्रकाशित कराई हैं उनकी भाषा, जैसा कि उन्होंने कहा है, कदापि हिन्दुस्तानी नहीं मानी जा सकती, क्योंकि वह फ़ारसी और अरबी के शब्दों से भरी हुई है। वह तो मर्दुमसुमारी के सुपरिन्टेण्डेन्ट श्रीयुत ई० ए० एच० ब्लन्ट साहब आइ० सी० एस० के लक्षणानुसार ख़ालिस उर्दू है।

[मार्च १९१४