पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/१९१

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११---उर्दू और "आजाद”।

गवर्नमेंट कालेज, लाहौर के भूतपूर्व अरबी-अध्यापक शम्सुल-उल्मा मौलबी मुहम्मद हुसैन साहब, आज़ाद ने एक किताब "आवे हयात" नाम की उर्दू में लिखी है। उसमें उर्दू के प्रसिद्ध प्रसिद्ध कवियों के जीवन-चरित, उनकी कविताओं के चुने हुए नमूने और उर्दू भाषा की यथाक्रम उन्नति आदि का वर्णन है । उर्दू-साहित्य में इस किताब की बड़ी महिमा है और किताब है भी अच्छी । मौलवी साहब ने पक्षपात को बिलकुल छोड़ कर अपने नामानुकूल खूब आज़ादी के साथ सब बातों की आलोचना की है । हज़रत आज़ाद फ़ारसी और और उर्दू के महा-वैयाकरण और महा विद्वान् समझे जाते हैं । अतएव उर्दू के विषय में उनकी क्या राय है, यह हम उनकी "आवे-हयात" से दिखलाना चाहते हैं। हम देखते हैं कि कुछ हिन्दी जाननेवालों का आग्रह उर्दू के समान दोषपूर्ण भाषा की लेख-प्रणाली और उसके व्याकरण की तरफ़ मतलब से अधिक बढ़ रहा है। इसीसे हम "आज़ाद" की आज़ादाना राय पाठकों के सामने रखते हैं और इस बात का फैसला हम उन्हींपर छोड़ते हैं कि इस भाषा की लेख-प्रणाली को आदर्श मानना मुनासिब है या नहीं और है तो कहाँ तक।