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मर्दुमशुमारी कुमारी की हिन्दुस्तानी भाषा


न समझिए। इसकी गुरुता वही अच्छी तरह समझ सकेंगे जो अपनी भाषा के महत्त्व को जानते हैं।

इन प्रान्तों में दो भाषायें बोली जाती हैं। एक उर्दू, दूसरी हिन्दी। शहरों और क्सबों में रहनेवाले मुसल्मानों, कुछ कायस्थों और काश्मीरियों, और कचहरियों तथा सरकारी दफ्त़रों के मुलाज़िमों को छोड़कर अन्य सभी की भाषा या बोली हिन्दी है। इन के सिवा यदि और भी कुछ लोग उर्दू बोलनेवाले होंगे तो उनकी, कथा जिनका नामनिर्देश यहां पर किया गया उन सब की, सम्मिलित सख्या हिन्दी बोलनेवालों के मुक़ाबले में शायद फ़ी सदी बीस पच्चीस से अधिक न होगी। पर सरकार इस अकेले प्रान्त में एक के बदले दो भाषाओं से बहुत घबराती सी है। मदरास में तीन तीन चार २ बोलियां या भाषा-बोली जाती हैं; परन्तु वहां की गवर्नमेंट उन सब का लेखा-जोखा रखने का झंझट उठा लेती है। बम्बई की गवर्नमेंट भी मराठी और गुजराती भाषा बोलनेवालों का हिसाब अलग अलग रखती है। ऐसा करने में यदि किसी को कुछ तकलीफ़,झंझट या सङ्कोच होता है तो संयुक्त-प्रान्त की गवर्नमेंट को। वह चाहती है कि भाषा-विषयक द्वैधीभाव यहां न रहे। इसी से वह, दो एक दफे, मदरसों के छोटे छोटे दरजों की पाठ्य पुस्तकों की भाषा एक कर डालने की चेष्टा भी कर चुकी है। उसकी इस भाषा या बोली का नाम कुछ लोगों ने सरकारी बोली रक्खा है। मगर उसकी यह चेष्टा अभी तक पूर्णरूप से सफ़ल नहीं हुई। ख़ैर ।