पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/२१४

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१३ विदेशी गवर्नमेंट और स्वदेशी भाषायें ।

यदि कोई जाति या देश किसी अन्य जाति या देश पर अधिकार कर ले और उसे अपने शासन में रखना चाहे तो उसे चाहिए कि वह शासित देश पर की शासित जाति में दूध मिश्री की तरह मिल जाय । तभी उसका अधिकार उस देश पर स्थायी या बहुकाल व्यापी हो सकेगा, अन्यथा नहीं । क्योंकि किसी देश पर किसी अन्य देश का शासन सर्वथा अस्वाभाविक है। और अस्वाभाविकता कभी चिरस्थायिनी नहीं हो सकती इससे विदेशी शासकों को स्वाभाविकता की ओर यथा शक्ति खिचना चाहिए और भेद-भावको दूर करने की चेष्टा करनी चाहिये। उन्हें चाहिए कि शासित देश की भाषा, लिपि, धर्म, सामाजिक व्यवहार, और रोति-रवाज आदि से यथेष्ट परिचित हो जाय और परिचय प्राप्त करके शासित देश की आत्मा, संस्कार और प्रचलित प्रथा के प्रतिकूल कोई काम न करे ! तभी शासकों और शासितो में सद्भाव की उत्पत्ति होगी और तभी शासित देश के निवासी शासकों का शासन किसी तरह सहन कर सकेंगे।

खेद है, इस प्रकार का सद्भाव भारत में नहीं। यहां के शासक अंग्रेज अपने देश से नौजवान अंँग्रेजों को बड़े बड़े उहदों पर नियत करके इस देश को भेजते हैं। वे यहां की प्राय: सभी बा- नों से अनभिज्ञ रहते हैं। फल यह होता है कि उन्हें पद पद