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विदेशी गवर्नमेंट और स्वदेशी भाषायें


दरजे का निर्देश तो प्राय: सर्वत्रही अंगरेजी में रहता है । जैसे तीसरे दरजे के सभी मुसाफिर अंगरेजों ही के टापू के रहने- वाले हों और अपनी अपनी मातृभाषायें भूल कर सबके सब एकदम-अंगरेजीदां हो गये हों ! इसका एक मात्र कारण इन लोगों का अविवेक, बेपरवाही और भारतवासियोंके सुभीतेकी ओर दुर्लक्ष्य करना ही है ! अगर ये चाहें तो जरा से ही प्रयत्न से ये दोष दूर हो सकते हैं । पर वे हमलोगों के सुभीते के लिए इतना भी नहीं करना चाहते । अथवा, सम्भव है, वे इसे दोष ही न समझते हों, वे अपने मनमें यह सोचते हों कि इससे हम लोगों को कुछ भी कष्ट नहीं, हमारी कुछ भी हानि नहीं । पर हमारा निवेदन तो यह है कि यदि ये लोग हमारी भाषा और हमारी लिपि से जानकारी रखते तो ये त्रुटियां कभी इनसे होतीं ही नहीं। पर इनका मूलमन्त्र तो यह जान पड़ता है कि हम ३२ करोड़ भारतवासी इन कुछ थोड़े से अधिकारियों के सुभीते के लिये इनकी भाषा के तो पण्डित बन जाय,पर ये मुट्ठीभर होकर भी हम करोड़ों के सुभीते के लिए हमारी भाषा न सीखें।

इनका यह उसूल यहीं तक सीमाबद्ध नहीं। वह और भी बहुत दूरतक व्याप्त है । यदि ये लोग हमारी भाषा सीखते तो हम बिना विशेष परिश्रम और ख़र्च के अपनी ही भाषा द्वारा विशेष ज्ञान सम्पादन करके शासन सम्बन्धी बहुत कुछ काम कर सकते । परन्तु ये ऐसा नहीं करते । ये प्रायः सारे शासन-कार्य अपनी अंग्रेजी ही भाषा में करते हैं । इसीसे कचहरियों,दफ्तरों, स्कूलों और कालेजों आदि में नौकरी पाने के उद्देश से