हमें भी अंग्रेजी भाषा पढ़नी पड़ती है। इससे इन्हींका सुभीता
है। हमारा नहीं, इस सुभीते की माया का ओर छोर नहीं। सिविल सरविस, डाक्टरी, बरिस्टरी, एजिनियरो, जङ्गलात आदि के महकमे में ऊंचे ऊंचे पद पाने की इच्छा रखनेवालों को विशेष
विशेष प्रकार की शिक्षा प्रात्त करनी पड़ती है। वैसी शिक्षा देने के लिए जो कालेज हैं उन सब में भी अंग्रेजी भाग के ही द्वारा शिक्षा दी जाती है। पर बात यहीं तक नहीं; यह नहीं कि वैसी शिक्षा यहीं इस देश में मिल जाय। वे कालेज प्रायः सबके सब विलायत में हैं । सो यदि हम लोग सो शिक्षा प्राप्त करना चाहें तो पहले तो दस पन्द्रह वर्ष यहां अंग्रेजी पढ़ने में सिरखपी करें;
फिर अनेक विन्ववाधाओं नाधानों को पार करके सात समुद्र पार विलायत पधारें । तब कहीं तक बैरिस्टर, बड़े डाक्टर या बड़े एजिनियर हाने का सोभाग्य प्राप्त कर सके। ये है विदेशो गवर्नमेंट की नियामतें।
योरप के बेलजियन, डेनमार्क, हालैंड, स्पेन, पोर्चुगाल,स्वीडन, और नार्वे आदि देश-हिन्दुस्तान के केवल एक एक सूबे के
बराबर हैं । पर वे सर प्रकार के पेशों, विधाओं, विज्ञानी और
व्यवसायों की ऊंची से ऊंची शिक्षा देने के लिये समस्त सावन
रखते हैं। हर विषयको शिक्षा देने के लिए वहां कालेज है। वहां-
वालोंके लिए न लन्दन जाना पड़ता न डाले, न आलकर्ड
और न केम्ब्रिज । पर इतने बड़े देश हिन्दोस्तान में ऐसे कालेज
नहीं । करोड़ों रुपये खर्च करके सरकार अपने मन के काम कर डालेगी, चार ही पाँच वर्षों में फोज का खच दूना करके