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साहित्यालाप

इतने महाभारत के बाद उम्मेदवार जब विलायत पहुंचेगा तब उसे अपने अध्ययन और अपने चालचलन से सेक्रेटरी आव स्टेटको सन्तुष्ट करना पड़ेगा। जी लगाकर अध्ययन न करने, चालचलन ठीक न होने, नियमों की पाबन्दी न करने और परीक्षा में पास न होने पर छात्रवृत्ति का रुपया लाटा देना पड़ेगा। इस दशा में उसे अपना सा मुंह लेकर भारत लोट आना पड़ेगा और पशुचिकित्सा- विभाग में नौकरी पाने से वञ्चित रहना पड़ेगा। सब वातें ठीक होने और परीक्षा पास कर लेने पर उम्मेदवार को एक दस्तावेज लिखकर कितनी ही शर्तों से अपने को जकड़ लेना पड़ेगा। तब कहीं पशुओं को चिकित्सा करने का दुर्लभ पद उसे मिल सकेगा।

भला इतनी कड़ी परीक्षा और इतनी शर्तों की पाबन्दी कराने पर यदि उम्मेदवारों को अपनी ही भाषा में इस शास्त्र का अध्ययन करने का सुभीता होता तो भो विशेष न खलता । यह न सही अपने देश में ही यह शास्त्र सीखने का प्रबन्ध हो जाता-अपनी भाषा में न सही, अङ्गरेजी में ही सही। परन्तु वह भी नहीं । पहिले १०, १५ वर्ष तक अड़्गरेजी पढ़ो, हजारों रुपये फूंक तापो, फिर विलायत जाओ। तब इस योग्य हो कि तुम घोड़ों और खञ्चरों का इलाज करो। इस प्रकार की अस्वाभाविकता क्या पृथ्वी की पीठ पर और भी किसी देश में है ? जब अंग्रेजी राज्य न था तब क्या यहां बीमार पशुओं का इलाज न होता था ? अथवा जिन देशों में अंग्रेज़ी राज्य नहीं या जहां अंग्रेज़ी भाषा प्रचलित नहीं वहां क्या पशुओं को चिकित्सा