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विदेशी गवनेमेंट और स्वदेशी भाषायें


होती ही नहीं। राजा का कर्तव्य है कि वह प्रजा के लिए सब तरह के सुभीते करदे । फिर क्यों नहीं सरकार सब तरह की शिक्षा का प्रबन्ध यहीं करती ? क्यों वह मुठ्ठीभर अधिकारियों के सुभीते के लिए करोड़ों भारतवासियों को अंग्रेजी पढ़ने के लिए लाचार करती है ? अधिकारियों को चाहिए कि वही खुद हमारी भाषायें सीखें और हमारी ही भाषाओं में हमें सब प्रकार की शिक्षा देने की योजना करें। यदि वे किसी कारण से ऐसा नहीं कर सकते तो हमें अपना काम आपहा करने के लिए मैदान साफ कर दें। हर बात के लिए हम कब तक विलायत की दौड़ लगाते रहेंगे?

जुलाई १९२१