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कवि सम्मेलन


द्रोहियों को देशभक्त बना सकता है । और मार्गभ्रष्टों को सुमार्ग में ला सकता है। जो मदोन्मत्त नर या नरेश किसी को कुछ समझते ही नहीं उनके दर्प को कवि ही चूर्ण कर सकता है। वह चाहे तो जगद्विजयो भूपालों के कोर्तिकलाप को कलङ्कित कर दे । वह चाहे तो अज्ञात या अल्प-प्रसिद्ध नरपालों के यशः- शरीर को सदा के लिए नहीं तो चिरकाल के लिए अवश्य ही अमर कर दे। ऐसे विश्ववन्ध कवि की महत्ता को सभी बुधवर स्वीकार करते हैं।

सत्कविता की प्राप्ति बड़े पुण्य से होती है। हृदय में कवित्व-बीज होने ही से मनुष्य सत्कवि हो सकता है। उस बीज की प्राप्ति पूर्व-जन्म के संस्कार और परमेश्वर की कृपा-विशेष ही से होती है। बीज होने से, थोड़े ही परिश्रम और शिक्षा की बदौलत, वह अङकुरित हो उठता है। फिर उस अङकुर को बढ़ते और अपनी पूर्णमर्यादा तक पहुंचते देर नहीं लगती। जिनको यह सौभाग्य प्राप्त होता है वही सुकवि या महाकवि की पदवी पाते हैं और संसार में अपना नाम ही नहीं अमर कर जाते किन्तु समाज को बहुत कुछ लाभान्वित भी कर जाते हैं । तथापि, इससे यह मतलब नहीं कि अन्य जन कवि हो ही नहीं सकते। जिनके हृदय में कवित्व का बीज नहीं वे भी परिश्रम, अध्ययन, अभ्यास और सत्सङ्ग की कृपा से कुछ न कुछ कवित्वशक्ति अवश्य ही प्राप्त कर लेते हैं। इसी से आचार्य्य दण्डी लिख गये हैं-