आम्दा बूदन्द। व हेच यकेरा फतेह आँ हिसार मयस्सर न शुद। याद अज़ मुद्दत चन्द माह दर शहूर सलासा व अशरों व सतमाआया बर दस्त बन्दगाने ऊ बफ़जले आफरीदगार फतेह शुद।
भावार्थ—६२३ हिज्री में उसने (अल्तमश ने) रनथम्भौर विजय करने का पक्का इरादा किया। दृढ़ता में यह किला सारे हिन्दुस्तान में प्रसिद्ध है। हिन्दुओं के इतिहास में लिखा है कि ७० बादशाहों ने इस पर धावा किया; परन्तु एक भी इसे न ले सका। कई महीने की लड़ाई के अनन्तर, ६२३ हिजरी में, यह क़िला ईश्वर की कृपा से, उनके बन्दों के हाथ आया।
इस विजय के उपलक्ष में अल्तमश ने एक नया सिक्का ढलाया। वह इस प्रकार का था—
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चांदी—तांबा। ५३ ग्रेन। १२२६ ई॰ (१२८३ स॰)
एक तरफ़
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दूसरी तरफ़
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टकसालवालों से तुर्की शब्द अल्तमश नागरी में उच्चारण करते और नक़्श करते नहीं बना। इसलिए उन्होंने लितितिमिसि कर दिया।