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साहित्यालाप

वृषभराज विराजमान हैं। एक में नागरी अक्षरों में "सम" और दूसरे में "स्त्री हंमीरः" का भी पता मिलता है।

३—जलालुद्दीन मनक़बरनी। इसका एक चांदी और तांबे का सिक्का बहुत घिसा हुआ मिला है। उस पर केवल "स्त्री" पढ़ा जाता है। दूसरा अच्छी दशा में है। वह चांदी और तांबे का है और तौल में ५४ ग्रेन है। उस पर है:—

एक तरफ़
घुड़सवार
श्री हंमीरः

दूसरी तरफ़
बैल
स्त्री जलालदीं

४—चंगेजखां के जितने सिक्के मिले हैं उन पर नागरी नहीं है। नागरी वाले भी सिक्के शायद जारी रहे हों।

५—हसन क़रलघ। इसके किसी किसी सिक्के पर राजपूत सवार और "श्री हमीरः" है। और किसी किसी पर बैल और "श्री हंमीर:" हैं, एक पर "श्री हसण कुरल" नक़्श किया हुआ है।

६—उज़बेग पाई के दो ही सिक्के मिले हैं। उन पर नागरी नहीं है। उनके एक तरफ़ "ज़रब मुलतान" और दूसरी तरफ़ "यसबक़ पाई" है।

७—नासिरुद्दीन कुबाचा। यह उच का गवर्नर था। उच पञ्जाब में एक प्रसिद्ध राजधानी थी। वहीं यह स्वाधीन हो गया और अपने नाम का सिक्का चलाने लगा। सरहिन्द से भक्खर तक का देश इसके अधिकार में था। उसकी गवर्नरी