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साहित्यालाप

सिंहासनासीन हुई। वह परदा न करती थी; घोड़े पर सवार होती थी; दरबार में आती थी; और अपने करने के काम खुद करती थी। जलालुद्दीन याक़ूत नाम का एक हबशी उसका प्रेमपात्र हो गया था। सरहिन्द के गवर्नर इख़्तियारुद्दीन से जब रिज़ीया का युद्ध हुआ तब वह हबशी मारा गया। रिज़ीया भी क़ैद हो गई। इख़्तियारुद्दीन रिज़ीया को क़ैद करके देहली की ओर बढ़ा। वहां वह भी मारा गया और रिज़ीया भी मारी गई। रिज़ीया के कई सिक्के मिले हैं। उनमें से किसी किसी के एक ओर सवार और 'स्त्री हंमीर,' है और दूसरी ओर—سلطان العظیم رضیہیہ و الدین (अस्सुल्तानुलाज़म रिज़ीयद्दुनिया व उद्दीन) है। इस से जान पड़ता है कि रिज़ीया उस का नाम न था; यह उसकी पदवी (उपाधि, खिताब) थी

सांतवां बादशाह मुइज़्ज़ुद्दीन बहराम शाह

(१२३९-४२ ई॰)

रिज़ीया के मारे जाने पर बहरामशाह बादशाह हुआ। वह अल्तमश का पुत्र था। वह भी अपने भाई के समान बादशाह होने के सर्वथा अयोग्य था। अपने लड़कों की अयोग्यता का पूरापूरा ज्ञान अल्तमश को था। यह बात उसने साफ़ कह दी थी। वह रिज़ीया को बादशाहत देना चाहता था; परन्तु बलवा होने के भय से अपने जेठे लड़के ही को उसने युवराज बना लिया था। तथापि रिज़ीया से वह बहुत प्रसन्न था; उससे राज्य-सम्बन्धी काम भी वह लेता था।

बहरामशाह के वज़ीर ने उसे क़ैद करके मरवा डाला।