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साहित्यालाप

हिन्दुस्तान में फ़ी सदी केवल १० आदमी साक्षर हैं। शेष ९० फ़ी सदी निरक्षर-भट्टाचार्य हैं। वे कहते हैं कि जो लड़के प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त भी कर लेते हैं वे भी कुछ दिनों में पढ़ा पढ़ाया सब भूल जाते हैं और मूर्ख के मूर्ख रह जाते हैं। स्त्रियां तो प्राय: सभी मूर्ख हैं। फ़ी सदी एक का साक्षर होना गिनती में नहीं आ सकता । यदि शिक्षा का यही ढंग रहा तो भारत की जातीय उन्नति हो चुकी। भारत में २०० के ऊपर भाषाये और बोलियां, तथा ५० से लेकर १०० तक भिन्न भिन्न प्रकार की लिपियाँ, प्रचलित है । परन्तु नाम लेने योग्य ("properly so-called") एक भी वर्णमाला नहीं। भारत के अविद्यान्धकार, निरक्षरता और जातीय अवनति का यही कारण है । देश की दशा सुधारने के लिए एक भाषा और एक लिपि की बड़ी आवश्यकता है । अधिकांश भारत में हिन्दुस्तानी (हिन्दी-उर्दू) तो एक भाषा का स्थान प्राप्त कर सकती है। पर एक लिपि के लिए रोमन अक्षरों के प्रचार के सिवा दूसरा इलाज ही नहीं। तथापि वर्तमान रोमन अक्षरों से भारत का काम नहीं चल सकता। अतएव उनमें ऐसा संशोधन होना चाहिए जिससे भारत के सभी प्रान्तों के शब्द- समूह उनमें लिखे जा सकें ।

यही पादरी नोल्स साहब के कथन का सारांश है । भारत की निरक्षरता दूर करने के लिए आपने जिस परिवर्तित रोमन वणमाला का आविष्कार किया है वह यहां पर दी जाती है (चित्र संख्या २ देखिये )। उसमें लिखने और छापने