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साहित्यालाप


मिला है जिसको एक तरफ़ फ़ारसी में ०५is (ककुबाद) ऊपर और "श्री सुलतां मुज्जुदीं" नीचे है ।

११९२ से १५५४ ईस्वी तक देहली में ४० बादशाहों ने बादशाहत की। ये ४० बादशाह पृथक् पृथक् ६ खानदानों के थे। इन ६ में से तुर्की खानदान के बादशाहों के सिक्कों का वर्णन हो चुका। इसके आगे खिलजी, तुगलक और लोदी आदि खानदान के सिक्को का वृत्तान्त लिखने लायक है। क्योंकि अगले बादशाहों के सिक्कों में भी अनेक सिक्के ऐसे मिले हैं जिन पर नागरी अक्षरों को स्थान दिया गया है। इससे सिद्ध है कि मुसलमान बादशाहों ने नागरी-लिपि को इस देश की प्रधान लिपि मानी थी। यदि ऐसा न होता तो वे कदापि इस लिपि का व्यवहार अपने सिक्कों पर न करते । बड़े खेद और आश्चर्य की बात है कि भारत की वर्तमान गवर्नमेंट ने राजराजेश्वर के नवीन रुपए पर नागरी अक्षरों को न रख कर फ़ारसी अक्षरों में 12 (यक रुपया ) रख्खा है । यह अनुचित है। इसका शीघ्र ही संशोधन होना चाहिये । फ़ारसी लिपि की अपेक्षा नागरी लिपि ही के जाननेवाले सब प्रान्तों में अधिक हैं। इसलिए उसी लिपि का प्रयोग सिक्कों पर होना चाहिए।

नवम्बर १९०४