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वक्तव्य


की कमी नहीं। वहां तो आपको ठहराने के लिए सब तरह की तैयारी बहुत पहले ही से हो चुकी है।

मैं एक व्यक्तिगत निवेदन करने के लिए आपको आशा चाहता हूं। हिन्दी का यह तेरहवां साहित्य-सम्मेलन है । इसके पहले एक को छोड़ कर और किती सम्मेलन में अभाग्यवश मैं नहीं उपस्थित हो सका। अस्वस्थता के सिवा इसका और कोई कारण नहीं । मैं दूर की यात्रा नहीं कर सकता और बाहर बहुत कम रह सकता हूं। परन्तु मेरे सुनने में आया है कि कुछ लोगों ने मेरी अनुपस्थिति का कुछ और ही कारण कल्पित किया है। वे समझते हैं कि मेरे उपस्थित न होने का कारण है मेरा ईर्ष्या-द्वेष, मेरा मद और मत्सर, मेरा गर्व और पाखण्ड । अतएव मैं चाहता था कि सम्मेलन के प्रधान कार्यकर्ता मुझे कोई ऐसा काम देते जिससे मुझ पर गुप्त रीति से किये गये इन निर्मूल दोषारोपणों का आपही आप परिहार हो जाता । मेरी हार्दिक इच्छा थी कि सम्मेलन में सम्मिलित होने के लिए समागत सज्जनों की सेवा का काम मुझे दिया जाता। तो मैं आपको अपना इष्टदेव समझ कर पादप्रक्षालन से प्रारम्भ करके आप की षोडशोपचार पूजा करता। ऐसा करने से मेरा पूर्णनिर्दिष्ट दोषारोपजात धब्बा भी धुल जाता, सम्मेलन के विषय में मेरे भावों का भी पता लग जाता और साथ ही इस जराजीर्ण अशक्त शरीर से पुण्य का सम्पादन भी कुछ हो जाता परन्तु इस पवित्र काम से मैं वञ्चित रक्खा गया और अनुरक्ति के वशीभत होने से इस वञ्चना को भी मैंने अपने सोभाग्य का