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वक्तव्य


लक्षण दिखा रहा है। जिसकी रक्षा का भार मनुष्यरूप में गणेश और शिव, कृष्ण और कौशिक, राम और रमा, तथा नारायण आदि अपने ऊपर लें, और फूलों के उद्गन की आशा से जिसका सिञ्चन और भी कितने ही देवोपम सजन स्नेहपूर्वक करें उस के किसी समय फूलने फलने में क्या सन्देह ? खेद इतना ही है कि जिस पुरुष-रत्न ने अपनी साधना के बल से हिन्दी-साहित्य की प्राण-प्रतिष्ठा इस नगर में की थी वह सौभाग्यशाली साहित्यसेवी इस समय यहां उपस्थित नहीं। भगवान उसका कल्याण करे ।

इस नगर के आधुनिक होने पर भी, यहां हिन्दी-साहित्य की उन्नति के साधनों की कमी नहीं। आशा है, आप की हित-चिन्तना और आपके परामर्श से उनकी संख्या और भी बढ़ जायगी और हिन्दी-साहित्य की श्रीवृद्धि के लिए नये गये उपायों की योजना हो जायगी। जो लोग यहां अपने बहीखाते का सारा काम मुड़िया लिपि में करते हैं उन में भी कितने हो उदारहृदय सज्जन हिन्दी से प्रेम रखते हैं और उसके साहित्य की समुन्नति के लिए बहुत कुछ दत्त-चित्त रहते हैं। हिन्दी के कवियों को, समय समय पर, जो पारितोषिक दिये जाते हैं और सस्ते मूल्य पर जो अच्छी अच्छी पुस्तकें निकाली जा रही हैं वह भी इन्हीं के कृपाकटाक्ष का फल है। अतएव कई प्रकार की त्रुटियां होने पर भी, इस नये नगर में भी, ऐसी अनेक बातें हैं जो यह आशा दिलाती हैं कि आप के उत्साहदान और सदनुष्ठान से साहित्य-सेवा का बहुत कुछ काम यहां भी हो सकता है। यही सब बातें ध्यान में रखकर, उच्च