पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/२५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५४
साहित्यालाप


आकांक्षाओं की प्रेरणा से, आप यहां पर आदरपूर्वक आमन्त्रित किये गये हैं । भगवती, वाग्देवी उन आकांक्षाओं को फलवती करें।

३-मातृभाषा की महना।

जिस निमित्त यह अनुष्ठान किया गया है और आज तेरह वर्षों से बराबर होता आ रहा है उसकी महत्ता बनाने की विशेष आवश्यकता नहीं । क्योंकि मेरी अपेक्षा आपको उसका ज्ञान अधिक है । इसलिए मैं दो ही चार विशेष विशेष बातों पर आप से कुछ निवेदन करूंगा।

सभ्य और शिक्षित संसार में, आज तक आव्रत्मस्तम्भपर्यंत ज्ञान का कितना और किस प्रकार सञ्चय हुआ है, और वह सञ्चय किन किन भाषाओं और किन किन ग्रन्थमालाओं में निबद्ध हुआ है, इसका विवेचन करने की शक्ति मुझ में नहीं। हिन्दी की माता कौन है ? मातामही कौन है ? प्रमातामही कौन है ? किस समय उसका उद्भव हुआ ? कैसे कैसे विकास होते हुए उसे उसका आधुनिक रूप मिला ? इस सब के विवेचन का भी सामर्थ्य मुझ में नहीं । हिन्दी के कौन कवि, लेखक या उन्नायक कब हुए ? उन्होंने उसकी कितनी सेवा या उन्नति की ? कब कौन ग्रन्थ उन्होंने लिखे ? उन से हिन्दी-साहित्य को कितना लाभ पहुंचा ? इसके निरूपण को भी योग्यता मुझ में नहीं। और, इन सब बातों की चर्चा करने की आवश्यकता भी मैं नहीं समझता। क्योंकि इस विषय की बहुत कुछ चर्चा सम्मेलन के भूतपूर्व अधिवेशनों में हो चुकी है