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वक्तव्य


भला इनसे कोई यह आशा कैसे कर सकता है कि ये शिशु-नाग और आन्ध्रभृत्य, चोल और पाण्ड्य, पाल और परमार, हैहय और चालुक्य-वंशों के इतिहास की कुछ भी विशेष बातें बता सकेंगे।

अतएव, भाइयो, इस बड़ी ही लजाजनक और हानिकारिणी त्रुटि को दूर करने के उपाय की कोई योजना कर दीजिये। पुरातत्व की खोज करने, आज तक जितनी खोज हुई है उसका ज्ञान-सम्पादन करने और प्रस्तुत सामग्री के आधार पर हिन्दी में इस विषय की पुस्तकों का प्रणयन करने की ओर सामर्थ्यवान सज्जनों का ध्यान आकृष्ट कर दीजिये । जो संस्कृत और अंँगरेज़ी का ज्ञान रखते हैं वे यदि चाहें तो इस काम को अच्छी तरह कर सकते हैं । आज तक हज़ारों शिला-लेख और दानपत्र प्राप्त हो चुके हैं; अनन्त प्राचीन सिक्कों का संग्रह हो चुका है; तुर्किस्तान के उजाड़ मरुस्थल तक में संस्कृत और प्राकृत भाषाओं के सैकड़ों गड़े हुए ग्रन्थों के ढेर के ढेर हाथ लग चुके हैं; मूर्तियों, मन्दिरों और स्तूपों के समूह के समूह पृथ्वी के पेट से बाहर निकाले जा चुके हैं । उन सब के आधार पर भारत के पुरातन इतिहास के सूत्र-पात की बड़ी ही आवश्यकता है।

भारतीय पुरातत्व की जो यह इतनी सामग्री उपलब्ध हुई है उसके आविष्कार का अधिकांश श्रेय उन्हीं लोगों को है जिनके प्रायः दोष ही दोष हम लोग वहुधा देखा करते हैं । यदि सर विलियम जोन्स, चार्ल्स विलकिन्स, जेम्स प्रिंसेप, जेन--