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साहित्यालाप


रल कनिङ्गहम, डाक्टर बुकनन, वाल्टर इलियट, कोलबुक, टाड, टामस, बाथ, टेलर, बर्जेस और फर्गुसन आदि विद्वानों ने इस विषय की ओर ध्यान न दिया होता तो भारत की प्राचीन ऐतिहासिक सामग्री बहुत करके पूर्ववत् ही अन्धकार में पड़ी रह जातो और जितनी प्राप्त हुई है उसका भी अधिकांश नष्ट हो जाता । अतएव इन पाश्चात्य पण्डितों ने हम पर जो यह इतना उपकार किया है तदर्थ हमें इन का हृदय से कृतज्ञ होना चाहिए । यद्यपि पुरातत्व के उद्धार के निमित्न भारत के वर्तमान शासकों ने एक महकमा ही अलग खाल रक्खा है और यद्यपि अब अनेक भारतवासी भी इस ओर दत्तचित्त हैं, पर इस की नीव डालनेवाले पूर्वनिदिष्ट विलायती विद्वान ही हैं। अब भी इगलैण्ड तथा योरप के अन्य देशों के विद्वान् ही इस विषय की खोज में अधिक मनोनिवेश कर रहे हैं, तथापि अनेक कारणों से उनके निर्णीत सिद्धान्तों में बहुधा त्रुटियां रह जाती हैं। विलायत के केम्ब्रिज-विश्वविद्यालय ने भारतीय इतिहास को ६ भागों में प्रकाशित करना आरम्भ किया है। उसके जिस पहले भाग में भारत का प्राचीन इतिहास है उस का मूल्य तो ३५) है, पर त्रुटियों की उसमें बड़ी ही भरमार है ! कुछ त्रुटियां तो असह्य हैं । उस दिन अँगरेज़ी के मासिक पत्र " माडर्न रिव्यू " में उसकी एक खण्डनात्मक आलोचना पढ़ कर हृदय पर कड़ी चोट लगी। विदेशियों के लिखे हुए इतिहास में भूलों और भ्रमों का होना आश्चर्यजनक और अस्वाभाविक नहीं। उनको दूर करने का एकमात्र उपाय यह है कि हम लोग