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वक्तव्य


करना ही चाहिए । योरप और अमेरिका ही में नहीं, जापान तक में देखिए, विदेशी भाषाओं और उनके साहित्य को शिक्षा का यथेष्ट प्रबन्ध है। मेरा निवेदन इतना ही है कि अपने प्रान्त में, अँगरेज़ी-साहित्य को उच्च शिक्षा के साधनों के साथ ही साथ, अपनी भाषा के भी साहित्य को शिक्षा के साधन‌ सुलभ हो जाने चाहिए। बनारस और लखनऊ के विश्व-विद्यालयों ने इसका सूत्रपात कर दिया है, यह प्रसन्नता की बात है । एक महाशय ने इलाहाबाद-विश्वविद्यालय के विचारकों की सभा में भी विचार के लिए एक प्रस्ताव भेजा था । नहीं मालूम, उसका क्या नतीजा हुआ । पर अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। एक नहीं, अनेक जनों को इस विषय में प्रयत्नशील होना चाहिए।

हिन्दी-साहित्य की शिक्षा के साधन यदि, अभी हाल में अनिवार्य रूप से सुलभ न कर दिये जाय, तो ऐच्छिक रूप ही से सही; कुछ तो सुभीता हो जायः सर्वाश में न हो तो अल्पांश ही में कलंक की यह कालिमा धुल तो जाय और तो भारत के लिए सौभाग्य का दिन तभी होगा जब हिन्दी भाषा के द्वारा सब प्रकार की उच्च शिक्षा देने के लिए विद्यमान विश्वविद्यालयों और कालेजों के साथ ही साथ, हिन्दी विश्वविद्यालयों और हिन्दी-कालेजों की भी स्थापना हो जायगी। क्या कभी ऐसा भी सुदिन आवेगा ? क्या कभी उच्च-शिक्षादान के विषय में हिन्दी-साहित्य का भी सुप्रभात होगा ? कृपा करके एक बार कह तो दीजिए-"होगा"।