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साहित्यालाप


देंगे तो, बहुत सम्भव है, उनका उल्लंघन करने पर आपके कशाघात के भय से, सत्य की हत्या होने से बच जाय ।

१२-हिन्दी भाषा की ग्राहिका शक्ति ।

हिन्दी-भाषा जीवित भाषा है। जो लोग उसे किसी परिमित सीमा के भीतर ही आबद्ध करना चाहते हैं वे मानों उसका उपचय-उसकी कलेवर-वृद्धि-नहीं चाहते। जीवित भाषाओं के विषय में इस प्रकार की चेष्टा, बहुत प्रयास करने पर भी, सफल नहीं हो सकती। संसार में शायद ऐसी एक भी भाषा न होगी जिसपर, सम्पर्क के कारण, अन्य भाषाओं का प्रभाव न पड़ा हो और अन्य भाषाओं के शब्द उसमें सम्मिलित न हो गये हों। अंगरेज़ी भाषा संसार की प्रसिद्ध और समृद्ध भाषाओं में है। उसीको देखिए। उसमें लैटिन, ग्रीक, फ्रेंच, जर्मन और सैक्सन आदि अनेक भाषाओं के शब्दों, भावो और मुहावरों का संमिश्रण है। यहां तक कि उसमें एक नहीं, अनेक शब्द संस्कृत-भाषा तक के कुछ थोड़े ही परिवर्तित रूप में, पाये जाते है । उदाहरणार्थ पाथ (Path) के रूप में हमारा पथ और ग्रास ( Grass ) के रूप में हमारा घास शब्द प्राय: ज्यों का त्यों विद्यमान है। बात यह है कि जिस तरह शरीर के पोषण और उपचय के लिए बाहर के खाद्य पदार्थों की आवश्यकता होती है वैसे ही सजीव भाषाओं की बाढ़ के लिए विदेशी शब्दों और भावों के संग्रह की आवश्यकता होती है। जो भाषा ऐसा नहीं करती या जिसमें ऐसा होना बन्द हो जाता है वह उपवास सी