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वक्तव्य


अतएव अब मैं कुछ थोड़ा ही सा और निवेदन करके इस पँवारे को पूर्ति करना चाहता हूं। अतरव दो चार मिनट का समय मुझे और देने को उदारता दिखाई जाय ।

१५---मुंडिया-लिपि के दोष ।

जिस लिपि में उर्दू लिखी जाती है वह अरबी या फ़ारसी लिपि है। कुछ समय पहले इस लिपि में बड़े बड़े दोष दिखाये जाते थे। उसका मज़ाक उड़ाया जाता था और यह कह कर उसका उपहास किया जाता था कि इस लिपि में किश्ती का कसबी और हिल्म का चिलम पढ़ा जासकता है । एक महाशय ने तो इस विषय की एक पुस्तक तक लिख डाली है। नाम शायद उसका है-उर्दू बेगम । निवेदन यह है कि दोषः ढूढ़ने ही के लिए यदि पैनी बुद्धि का कोई मनुष्य लिपियों की आलोचना करे तो ऐसी लिपि शायद ही कोई निकले जो सर्वथा निर्दोष हो। बात यह है कि प्रत्येक भाषा और प्रत्येक लिपि को प्रकृति जुदा जुदा है; वह अपने ही देशजन्य भावों और शब्दों को अच्छी तरह प्रकट कर सकती है। तथापि वह निर्दोषता का दावा नहीं कर सकती। अपनी जिस देवनागरी-लिपि को हम सबसे अच्छी लिपि समझते हैं वह भी तो निर्दोष नहीं मानी जाती। उसकी सदोषता विदेशी ही नहीं,ऐसे स्वदेशी विद्वान् भी दिखाने और उसे दूर करने के उपाय बताने लगे हैं जो उसके उपासक हैं। परन्तु इस बात को जाने दीजिए। विचार इस बात का कीजिए कि जब हम औरों की लिपि के दोष दिखाने के लिए पुस्तकें तक लिख डालने

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