मनुष्य इस साधन से वञ्चित हैं वे इस ज़माने में अपनी यथेष्ट
उन्नति कदापि नहीं कर सकते। अब कहिए, क्या यह साधन
केवल मुँड़िया-लिपि जाननेवालों को भी सुलभ है ? नहीं है।
'अतएव इस लिपि का व्यवहार करनेवालों का कर्तव्य है कि
वे इसके बदले देवनागरी लिपि से काम ले और यदि, किसी
कारण से, यह न कर सके तो अपनी जातीय लिपि, न जानते
हो तो, सीख तो ज़रूर ही लें। सन्तोष की बात है कि इस नगर के अनेक महाजन, व्यवसायी और दुकानदार देवनागरी लिपि
अच्छी तरह जानते हैं और उससे हार्दिक प्रेम भी रखते हैं। जैसा कि एक जगह पहले मैं निवेदन कर पाया है, हिन्दी-कवियों को सैकड़ों रुपये पुरस्कार देनेवाले और सम्मेलन के इस अधिवेशन को विशेष सहायता पहुंचानेवाले भी वही हैं।
१६-उर्द के विषय में विचार ।
अभी-अभी मैं उस लिपि की सदोषता का उल्लेख कर चुका हूं जिसमें अरबी, फारसी और तुर्की भाषायें लिखी जाती हैं। उर्दू भी उसी में लिखी जाती है। पर उसके दोषपूर्ण होने के कारण हमें उसका उपहास न करना चाहिए और घृणा तो उससे कभी करनी ही न चाहिए। हिन्दू और मुसलमान इस देशरूपी शरीर की दो आंखें हैं। एक आंख के विकृत होने से क्या कोई उसे निकाल बाहर करता है ? क्या कोई उससे नफ़रत करता है ? इसमें सन्देह नहीं कि हिन्दी ही हमारी जातीय भाषा और देवनागरी ही हमारी जातीय लिपि है अथवा हो सकती है। दिन पर दिन इनके विस्तार की वृद्धि