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वक्तव्य

१६-अपनी व्यक्तिगत अन्तिम प्रार्थना ।

अब आप मुझे अपनी व्यक्तिगत अन्तिम प्रार्थना के लिए क्षमा प्रदान करें।

इस वक्तव्य के प्रारम्भ में मैं आपकी मानसिक पूजा कर चुका हूं। पूजान्त में साधक अपने इष्टदेव से कुछ माँगता भी है-वह अपनी अभिलषित वान्छा की पूर्ति के लिए कुछ प्रार्थना भी करता है। पूजा के इस अङ्ग का उल्लेख करना मैं वहां भूल गया हूं। उस भूल की मार्जना कर डालने की अनुमति, अब मैं अन्त में, आप से चाहता हूं। मुम अपुण्यकम्र्मा ने अपनी आयु के कोई ६० वर्ष अधिकतर तिल, तण्डुल, लवण और इन्धनही की चिन्ता में बिता दिये । अपनी मातृभाषा हिन्दी की उन्नति के लिए जो जो काम करने का सङ्कल्प मैंने किया था वे सब मैं नहीं कर सका। यह जन्म तो मेरा अब गया । आप उदारता और दयालुतापूर्वक मेरे लिए परमात्मा से अब यह प्रार्थना कर दीजिए कि जन्मान्तर ही में वह किसी तरह वे काम कर सकने का सामर्थ्य मुझे दे। वह मुझपर ऐसी कृपा करे कि मेरे हृदय में‌ मातृ-भाषा का आदर सदा बना ही न रहे, वह बढ़ता भी रहे,और जिस भाषा में मेरी माँ ने मुझे अम्मा और बप्पा कहना सिखाया था उसी में हरि-हर-स्मरण करते हुए-

प्राणाः प्रयान्तु मम नाथ तव प्रसादात्

मार्च १९२३