पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/३२१

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१७—विचार-विपर्य्यय।

(१)


सम्पर्क के कारण पास-पड़ोस की भाषाओं का प्रभाव अन्य भाषाओं पर अवश्य ही पड़ता है । उन्नत भाषाओं के सम्पर्क से अनुन्नत भाषाओं की श्री-वृद्धि हो सकती है और होती भी है। यह हम प्रत्यक्ष देखते हैं । परन्तु अन्य भाषाओं का अनुकरण, आंख बन्द करके, न करना चाहिए । कथा, कहानी, आख्यायिका और यदा कदा उपन्यास के भी लिए बँगला-लेखकों ने गल्प" शब्द का प्रयोग कर दिया। बस, हम लोगों ने उनकी नकल उतार लो। अब जिधर देखिए उधर ही गल्प ही गल्प की गर्जना सुनाई दे रही है। हम लोगों ने कोय,लुग़त या डिक्शनरी देखने की तकलीफ़ गवारा न की । यह किसीने किसीसे न पूछा कि यह गल्प-शब्द कूद कहां से पड़ा। पूछते या देखते तो मालूम हो जाता कि गप या गप्प और जल्प ( जिससे जल्पना की सृष्टि हुई है) का पता तो कोषों में लगता है, पर गल्प का नहीं, और, गल्प को यदि‌ हम जल्प या गप की साथी या भाई-भाई क्यों बहन-मानते हैं तो शब्दार्थ में कितना लाघव आ जाता है। पर देखने-भालने और पूछने-पाछने की ज़रूरत क्या ? बँगला भाषा उन्नत है ! हम उसकी भली-बुरी सभी बातों की नकल करके उसीके समकक्ष होना, किम्बहुना उससे भी बढ़ जाना, चाहते हैं !