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आजकल के छायावादी कवि और कविता


शास्त्र के नियमों के परिपालन और अलङ्कार आदि की योजना को भी आवश्यक बताता है । पर आप इन पचड़ों और झगड़ों को जाने दीजिए । आप सिर्फ यह देखिए कि कोई पत्र लिखता बोलता, या व्याख्यान देता है तो दूसरे पर अपने मन का भाव प्रकट करने ही के लिए वह ऐसा करता है या नहीं । यदि वह इसलिए यह कुछ नहीं करता तो न उसे लिखने की ज़रूरत और न बोलने की । उसे मूक बन कर या मौन धारण करके ही रहना चाहिए । सो बोलने या लिखने का एकमात्र उद्देश्य दूसरों को अपने मन की बात बताने के सिवा और कुछ हो ही नहीं सकता। जो अंगरेज़ी या बंगला-भाषा नहीं जानता उसे इन भाषाओं की बढ़िया से भी बढ़िया कविता या कहानी सुनाना बेकार है । जो बात या जो भाषा मनुष्य सबसे अधिक सरलता से समझ सकता है उसी बात या उसी भाषा की पुस्तक पढ़ने या सुनने से उसके हृदय पर कुछ असर पड़ सकता है। क्योंकि जब तक दूसरे का व्यक्त किया हुआ मतलब समझ में न आवेगा तब तक मनुष्य के हृदय में कोई भी विकार जागृत न होगा। पशुओं के सामने आप उत्तमोत्तम कविता का पाठ कीजिए । उनपर कुछ भी असर न होगा।

अतएव गद्य हो या पद्य, उसमें जो कुछ कहा गया हो वह श्रोता या पाठक की समझ में आना चाहिए । वह जितना ही अधिक और जितना ही जल्द समझ में आवेगा, गद्य या पद्य के लेखक का श्रम उतना ही