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पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/४१

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साहित्यालाप



लिए एकत्र हो कर प्रयत्न करें। इस एकत्र होने ही, इस एका करने ही में देश का बल है, इसीमें देश का उत्कर्ष है, इसीमें देश का कल्याण है। शेख सादी ने क्या ही अच्छा कहा है---

बनी आदम आजाय यक दीगरन्द ।

के दर आफ़रीनिश ज़ि यक जौहरन्द ॥

चु अज़वे मदद आनरद रोज़गार ।

दिगर अज़वहारा न मानद फ़रार ॥

तु गर मेहनते दीगरां बेग़मी।

न शायद के नामत नेहन्द आदमी॥

अर्थात् ब्रह्मा की सारी सृष्टि परस्पर अवयव के समान है; क्योंकि सबकी उत्रत्ति एक ही तत्व से है। यदि एक अवयव को पीडा पहुंचती है तो दूसरे अवयव सी घड़ा उठते हैं। इसलिए यदि तू दूसरेके दुःख से दुःखित न हुआ तो तू मनुष्य कहलाये जाने के योग्य ही नहीं। इसमें 'आदम' और 'आदमी' दे दो शब्द ध्यान में रखने योग्य हैं।

देश के काम-काज भापा ही के द्वारा होते हैं। यदि भाषा न हो तो सहसा सब ब्यापार बन्द हो जायं। यजिन चलाने के लिए जैसे भाफ की आवश्यकता है, देश के काम-काज चलाने के लिए वैसे ही भाषा की आवश्यकता है। भाषा ही देश के कार्य-कलाप चलाने की प्रधान शक्ति है। भारतवर्ष के भिन्न २ प्रान्तों में रहनेवाले, जब एक सर्वसाधारण भाषा के द्वारा अपने विचार एक दूसरे पर प्रकट कर सकेंगे तभी देश की दशा सुध-