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देशव्यापक भाषा



सकते हैं। जो लोग बंगाल से बाहर नहीं आये उनकी भी समझ में हिन्दी आ जाती है। क्योंकि क्रियापदों को छोड़ कर हिन्दी और बंगला में और कोई विशेष भेद नहीं। उड़ीसा की भाषा उड़िया कहलाती है। वह बँगला ही की एक शाखा है। इस लिए उसके विषय में अलग विचार करने की आवश्यकता नहीं। यदि कोई उड़िया दूसरे प्रान्तों में यात्रा के लिए निकलता है तो उसे हिन्दी ही से काम पड़ता है। वह चाहे हिन्दी न बोल सके ; परन्तु दूसरे प्रान्तवाले उससे हिन्दी ही में बातचीत करते हैं। उड़िया लोगोंही की नहीं, और प्रान्तवालों की भी परित्राता हिन्दी ही है। महाराष्ट्र, गुजरात, तैलड़्ग और द्रविड आदि प्रदेशों के रहनेवाले जब भिन्न भाषा बोलनेवाले प्रान्तों को जाते हैं तब उनको हिन्दी ही से काम पड़ता है। हिन्दी ही उनकी सहायक होती है। अतएव सबको सहायता देनेवाली यह दयामयी हिन्दी ही देशब्यापक भाषा होने के योग्य है। उसे दस करोड़ मनुष्य बोलते हैं और कोई दस ही करोड़ समझ सकते हैं। शेष दस करोड़ उसे थोड़े ही प्रयास में सीख सकते हैं। जिस भाषा को इस विस्तृत देश के दो तिहाई लोग समझ सकें उसके देशव्यापक होने की योग्यता के विषय में और अधिक प्रमाण की आवश्यकता ही क्या है ?

हिन्दुस्तान के दक्षिण में चार भाषाओं की प्रधानता है- मराठी, गुजराती, कनारी और तामील। इनमें से मराठी भाषा हिन्दी से बहुत कुछ मिलती जुलती है। सबसे बड़ी समता-समता क्यों, तद्रूपता तो यह है कि मराठी भी देवनागरी ही