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साहित्यालाप


लिपि में लिखी जाती है। इसलिए मराठी बोलनेवाले बिना प्रयास हिन्दी की पुस्तकें पढ़ सकते हैं और हिन्दी बोलनेवाले मराठी की पुस्तकें पढ़ सकते हैं । बँगला की तरह मराठी में भी क्रियापदों और विशेष विशेष संज्ञाओं को छोड़ कर शेष संस्कृत ही के शब्द रहते हैं । अतएव थोड़े ही प्रयास से महाराष्ट्र लोग हिन्दी और हिन्दी बोलनेबाले मराठी सीख सकते हैं। महाराष्ट्रों को हिन्दी सीखने के लिए चार पांच महीने काफी समझना चाहिए। सीखने की विशेष आवश्यकता भी नहीं है। दो चार महीने हिन्दी के समाचारपत्र और पुस्तकें धीरे धीरे पढ़ते रहने ही से वे हिन्दी का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। महाराष्ट्रों को हिन्दी बोलने और सुनने का बहुत अवसर मिलता है। उनमें गानेवाले बहुधा हिन्दी के गीत गाते हैं। हिन्दी के पद और हिन्दी की ठुमरियां उनको वहुत पसन्द हैं। हरिदास लोग महाराष्ट्रों में कथा कहते हैं; वे भी बहुधा हिन्दी के दोहे, पद और धनाक्षरी कथा के बीच बीच में कहते हैं। इसके सिवा महाराष्ट्रों को हिन्दी में व्याख्यान भी कभी कभी सुनने को मिलते हैं। महाराष्ट्रों के लिए हिन्दी नई नहीं। उससे उनका सम्पर्क सदैव बना रहता है । अतएव यदि वे हिन्दी को अपनी भाषा बना लें तो उनको किसी ऐसी कठिनाई का सामना न करना पड़े जो सहज ही में हल न हो सके। हिन्दी और मराठी की वाक्य-रचना की रीति एक ही है। व्याकरण में भी कोई विशेष अन्तर नहीं ; अन्तर इतना ही है कि महाराष्ट्र तीन लिङ्ग मानते हैं और हमलोग