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देशव्यापक भाषा



केवल दो-स्त्री लिङ्ग और पुल्लिङ्ग ; नपुंसक लिङ्ग हम नहीं मानते। परन्तु यह अन्तर कोई अन्तर है ? जिस महाराष्ट्र ने कभी हिन्दी नहीं पढ़ी उससे यदि किसी हिन्दी-समाचारपत्र का एक कालम ( स्तम्भ ) पढ़ाया जाये तो वह भी उसका भावार्थ अवश्य समझ जायगा।

महाराष्ट्रों की तरह गुजराती भी सहज ही में हिन्दी सीख सकते हैं। यद्यपि गुजराती लिपि देवनागरी लिपि से कुछ भिन्न है ; तथापि उसकी भिन्नता बहुत ही थोड़ी है। देवनागरी लिपि जाननेवाले दो ही तीन दिनों में गुजराती लिपि सीख कर उसे अच्छी तरह पढ़ सकते हैं। गुजराती अक्षरों का सिर खुला रहता है ; उनमें ऊपर लकीर नहीं रहती। गुजरात राजपूताने से लगा हुआ है। इसलिए गुजरातियों को हिन्दी बोलनेवालों से बहुत काम पड़ा करता है। उनमें लिखे पड़े लोग तो हिन्दी समझते ही हैं ; बेपढ़े भी थोड़ा बहुत समझ लेते हैं।

जिसमें हिन्दी लिखी जाती है उस देवनागरी लिपि से, गुजराती के समान, बँगला लिपि में भी बहुत कम अन्तर है। बंगाल और गुजरात में धर्म-सम्बन्धी प्रायः सभी संस्कृत-ग्रन्थ देवनागरी लिपि में हैं। संस्कृत का प्रचार भी उन प्रान्तों में कम नहीं। सभी लिखे पड़े लोगों को देवनागरी लिपि का बहुधा बोध होता है। अतएव यदि गुजरात और वङ्गदेश में गुजराती और बंगला के स्थान में देवनागरी लिपि काम में लाई जाय तो क्या ही अच्छी बात हो ; थोड़े ही दिनों में हिन्दी की