अनार्य भाषाओं में कनारी और तामील मुख्य हैं। ये दोनों भाषायें संस्कृत से कुछ भी समता नहीं रखतीं । ये बिलकुल ही भिन्न भाषायें हैं। इनकी लिपि भी संस्कृत, अर्थात्, देवनागरी लिपि से भिन्न है। इनमें से कनारी का प्रचार बहुत कम है। वह विशेष करके माइसोर और उसके आसपास के ज़िलों में बोली जाती है। परन्तु तामील बोलने-वालों की संख्या अधिक है। यह भाषा मदरास हाते में बहुत अधिकता से बोली जाती है। भारतवर्ष के एक अष्टमांश में तामील का प्रचार है। किसीका मत है कि मदरास प्रान्त के निवासी आर्यों की सन्तान नहीं, इस लिए उनकी भाषा
और उनकी लिपि आर्यों की भाषा और लिपि से नहीं मिलती।
किसी किसीका मत है कि वे आर्यों ही की सन्तान हैं, परन्तु अनार्यों को हटाते हटाते वे दक्षिण में बहुत दूर तक चले गये,
और वहां से आगे अनार्यों को कहीं जाने का मार्ग न रहने के कारण, आर्य और अनार्य पास पास रहने लगे। इस सतत सहबास के कारण आय्यौं में अनार्यों की भाषा का प्रचार हो गया।
और प्रान्तों की अपेक्षा मदरास में धार्मिक शिक्षा का अधिक प्रचार है। शङ्कर, बल्लभ, रामानुज आदि के अनुयायी उस तरफ़ अधिक हैं। ये तीनों महात्मा उस प्रान्त में बहुत काल तक रहे भी हैं। इस कारण वहां पहले ही से धार्मिक शिक्षा की ओर लोगों की प्रवृत्ति अधिक है। हमारे वेद, पुराण, शास्त्र, उपनिषद् सब संस्कृत ही में हैं। इसलिए संस्कृत